नागपुर: अनुदानित-गैर अनुदानित स्कूलों में 6 से 14 वर्ष के विद्यार्थियों को स्कूल में मध्यान्न भोजन देना अनिवार्य है। वर्ष 2009 में बने शिक्षा के अधिकार कानून के तहत बच्चों को स्वस्थ भोजन देने का नियम है। पर स्कूल खुलने को महीना बीत जाने के बाद भी कई स्कूलों में बच्चों को भोजन न मिलने का सनसनीखेज मामला सामने आया है।
आरटीई के तहत बच्चों को भोजन देने के संबंध में 2 फरवरी 2016 को राज्य सरकार ने बकायदा सरकारी अधिनियम निकला है। जिसमे स्कूलों में पोषक आहार वितरण के संबंध में दिशानिर्देश जिला मुख्यालयों और स्कूल पोषक आहार विभाग को दिया गया है। पर इस मामले में बड़े पैमाने में कोताही बरते जाने की जानकारी सामने आई है।
आरटीई एक्शन कमिटी के मो शहीद शरीफ ने इस मामले को उजागर करते हुए बच्चों के भोजन में बड़े पैमाने में जिले में भ्रष्टाचार होने की बात कही है। शरीफ ने सेंट जोसेफ कान्वेंट के हेड मास्टर द्वारा 20 जुलाई 2016 को अन्न आपूर्ति और नागरी वितरण विभाग को लिखे पत्र का हवाला देते हुए कहा कि कॉन्वेंट के हेड मास्टर ने विभाग को उनके यहा शालेय पोषक आहार की सामग्री एक महीने बाद भी न मिलने की जानकारी दी है। जबकि इस संबंध में सरकार का निर्देश साफ़ कहता है कि बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान्न भोजन की सामग्री समय से पहले स्कूलों को वितरित की जानी चाहिए। पर राज्य की स्कूल पिछले महीने की 20 तारीख से शुरू हो चुकी है। फिर भी उनके पास लगातार अभिभावक मध्यान्न भोजन न मिलने की शिकायत लेकर पहुंच रहे है।
प्रशासन इस संबंध में किस तरह लापरवाही बरत रहा है। इसका खुलासा खुद स्कूल के हेड मास्टर द्वारा लिखे पत्र से साफ होता है। यह सिर्फ एक स्कूल तक सीमित मामला नहीं है। कई स्कूल में बच्चों को उनका हक़ नहीं मिल रहा है। जो गंभीर मसला है। शरीफ ने इस मामले की जांच किये जाने की मांग की है। उन्होंने दावा किया है कि बच्चों के लिए सरकार से मिलने वाले अनाज का गोरखधंधा चल रहा है। इतना ही नहीं मदरसो और मक्तबा में भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत मध्यान्न भोजन देने का नियम है। जिसका पालन नहीं किया जा रहा। प्रशासन जानबूझ कर इस जानकारी को छुपा रहा है। बच्चों को दिए जाने वाले भोजन की समय-समय पर जांच अनिवार्य है, जो नहीं होती ऐसा दावा भी शरीफ ने किया।