नई दिल्ली: उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने के मुद्दे पर कॉलेजियम के पांच जजों ने बैठक की। दोपहर एक बजे प्रस्तावित बैठक में चर्चा की गई कि सरकार को दोबारा उनका नाम भेजा जाए या नहीं। बता दें कि एक घंटे चली इस बैठक में क्या फैसला लिया गया है ये अभी साफ नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि जस्टिस जोसेफ के मामले पर कॉलेजियम की आम सहमति बन गई है और केंद्र को जस्टिस जोसेफ का नाम दोबारा भेजा जा सकता है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पहली बार जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की सिफारिश लौटा दी थी। माना जा रहा था कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज जिस्टिस जे चेलमेश्वर द्वारा सीजेआई दीपक मिश्रा को लिखे पत्र के बाद कॉलेजियम ने ये बैठक बुलाई।
जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस से कॉलेजियम की बैठक बुलाकर जस्टिस जोसेफ का नाम दोबारा सरकार के पास भेजने का आग्रह किया। इससे पहले चीफ जस्टिस को लिखी चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि 10 जनवरी को जिन परिस्थितियों में कॉलेजियम ने उत्तराखंड के चीफ जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की थी, उनमें परिवर्तन नहीं हुआ है।
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ भी जस्टिस केएम जोसेफ का नाम दोबारा सरकार को भेजने का समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने नाम वापसी पर चिंता जताते हुए कहा था कि अब वह सब हो रहा है, जो कभी नहीं हुआ। दोबारा भेजा तो सरकार को स्वीकार करना होगा आज अगर कॉलेजियम ने जस्टिस केएम जोसेफ का नाम दोबारा सरकार के पास भेजा होगा तो केंद्र को उसे स्वीकार करना ही होगा।
जस्टिस जोसेफ 2016 में कांग्रेस शासित उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का मोदी सरकार का फैसले खारिज करने वाली पीठ के अध्यक्ष थे। विधि विशेषज्ञों के अनुसार सरकार को सुप्रीम कोर्ट के 1993 और 1998 में दिए दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। हालांकि, सरकार द्वारा कॉलेजियम की अनुशंसा पर फैसला लेने की कोई तय समय सीमा नहीं है, यानी सरकार चाहे तो इसे ठंडे बस्ते में डाल सकती है।