Published On : Tue, Oct 31st, 2017

देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है व्यापारी समाज

Traders
नागपुर: देश के विकास के लिए सबसे अधिक आय, कारोबार के मार्फत आने वाले टैक्सों से होती है. ऐसे में व्यापारी देश की रीढ़ की हड्डी होते हैं. व्यापार का दायरा निरंतर बढ़ रहा है. इससे व्यापारी संगठनों की जिम्मेदारी बढ़ गई है. जागरुक व्यापारियों का मानना है कि संगठन की नीतियों पर चलकर ही व्यापारियों को एकजुट होकर कार्य करना चाहिए. इसी एकता के बल पर अच्छी तरह से व्यापार किया जा सकता है.

याद रहे कि देश में आजादी के बाद काफी बड़े पैमाने में विकास हुआ है, जिसमें व्यापारियों का बड़ा योगदान रहा. जिसे नाकारा जाना गलत होगा। बावजूद इसके पिछले २ दशक से इन व्यापारियों को सिर्फ और सिर्फ चोर समझा जा रहा है.जबकि लगभग सभी प्रकार के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर ये भरते या इनसे वसूले जाते हैं. इसके बावजूद इन्ही व्यापारियों से सर्वप्रथम सरकारी मशीनरी/ खाकीधारी कानून का धौंस दिखाकर खुद के लाभ के उगाही होती रही जिसे नाकारा नहीं जा सकता है. इतना ही नहीं इसके बाद राजनीतिक पार्टियां और उसके छोटे-बड़े-दिग्गज सफेदपोश सहित व्यापारियों से सम्बंधित विभाग के मार्फ़त चुनावी चंदा वसूलती रही है.

इसके साथ लगभग बड़े शहरों के बड़े-बड़े मीडिया हाउसेस विज्ञापन के नाम पर मनमानी राशि समय-समय पर संकलन करते रहे है,यह कहते हुए कि वे सालभर सेवाएं देते हैं. एक-एक मिडिया हाऊस ने शहर/विभाग निहाय पुस्तिका निकालकर सिर्फ इस दीपावली पर व्यापारियों से करोड़ों रुपए सिर्फ विज्ञापन संकलन किए. उक्त आर्थिक सहयोग के बजूद अंत में न्याय व्यवस्था में भी अनेकों मामले में व्यापारियों को दोषी ठहराते रही है.

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अब सवाल यह उठता हैं कि ऐसे में आखिर ये व्यापारी वर्ग व्यवसाय करें तो कैसे और कहां करे. आज सचमुच संकट के दौर से व्यापारी वर्ग गुजर रहा है. इनका हक़ीक़त में कोई वाली नहीं है. कहीं ऐसा न हो कि देश की तरक्की का एक बड़ा आधारस्तंभ खिसक जाए.

उल्लेखनीय तो यह हैं कि आज किसी भी शहरों के व्यापारियों की दशा उस शहर में स्थित आयकर व बिक्री कर विभाग में दर-दर भटकते आसानी से देखी जा सकती है. शहर-राज्य-देश के विकास में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान देने वाले ये व्यापारियों से उक्त विभाग का चपरासी भी सीधे मुंह बात नहीं करता. कर्मचारी तो आरोपियों जैसा सुलूक करते हैं और अधिकारी की मत पूछिए.

दर्जनों व्यापारी और उससे जुड़े समूहों से चर्चा करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता दिखाई दे रहा है कि देश की अर्थ व्यवस्था को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष सहयोग देकर देश को तरक्की की राह दिखाने वाले छोटे-बड़े व्यापारियों से कोई गलती जाने-अनजाने में हो जाए तो उसे ऐसी सजा न दी जाए, जिससे उसका व्यापार ही पूरा प्रभावित हो जाए. एक-दो अवसर पर जुर्माना देकर उसे सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए.

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