Published On : Wed, Sep 12th, 2018

सजायाफ़्ता और नक्सली को हथियार सप्लाई करने वाले आरोपी पर वन विभाग मेहरबान

Advertisement

नागपुर: यवतमाल जिले के पांढरकवड़ा के वनपरिक्षेत्र में आतंक का पर्याय बन चुकी टी-1 बाघिन को मारने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगने के बाद वनविभाग ने ऑपरेशन तेज़ कर दिया है। वन विभाग द्वारा इस काम के लिए हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफ़ात अली ख़ान को बुलाया गया है। शफ़ात के बारे में कहाँ जाता है की उसने वन विभाग के ऐसे कई ऑपरेशन में भाग लेकर 500 से अधिक जंगली जानवरों का जायज़ शिकार किया है।

शफ़ात ने बाघिन को जंगल में ढूंढने का काम शुरू कर दिया है लेकिन इस काम के लिए उसकी नियुक्ति पर सवाल खड़े किये जा रहे है। सवाल सिर्फ नियुक्ति भर का नहीं है उसको यह जिम्मेदारी देने के पीछे राज्य के वन विभाग की मंशा पर भी सवाल उठाये जा रहे है। शफ़ात राज्य के वन विभाग द्वारा ऐसे मामले के लिए भले ही अधिकृत शार्प शूटर हो लेकिन चौकाने वाली बात है की उसे उसके गृह राज्य तेलंगाना के साथ कर्नाटक,मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ राज्यों ने बैन लगा रखा है। ऐसे मामलों ऑपरेशन के दौरान उसकी संदेहास्पद भूमिका को लेकर उस पर भले ही कई राज्यों ने बैन लगाया हो लेकिन राज्य का वन विभाग उस पर क्यूँ मेहरबानी दिखा रहा है यह समझ से परे है।

Advertisement
Wenesday Rate
Friday 27 Dec. 2024
Gold 24 KT 76,800/-
Gold 22 KT 71,400/-
Silver / Kg 89,100/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

शफ़ात के ख़िलाफ़ जाँच शुरू है बावजूद इसके टी 1 बाघिन को मरने के लिए उसी को नियुक्त किया गया
अपने नाम के साथ नवाब शब्द जोड़ने वाले शफ़ात के ख़िलाफ़ यवतमाल जिले के ही पांढरकवड़ा में ही 6 महीने पहले एक ऑपरेशन के दौरान वन विभाग के साथ जालसाज़ी किये जाने की जाँच जारी है। इस मामले में एक बाघिन को मारने के लिए ही उसे बुलाया गया था। आम तौर पर खूँखार जानवरों को मारने से पहले एक बार उन्हें बेहोश कर पकड़ने का प्रयास किया जाता है। इस काम के लिए बेहोशी की विशेष दवा का इस्तेमाल किया जाता है। शफ़ात ने 6 महीने पहले इस ऑपरेशन के दौरान वन विभाग को बेहोशी की दवा पचास हज़ार रूपए में बेचीं थी।

इस ऑपरेशन के बाद पांढरकवड़ा वन परिक्षेत्र की उप वन संरक्षक अबरणा ने पाया की शफ़ात ने इस दवा के लिए न सिर्फ ज़्यादा क़ीमत वसूली बल्कि एक्सपायरी दवा विभाग को बेच दी। इस मामले में जाँच के आदेश हुए जिसमे पता चला की शफ़ात ने तेलंगाना के जिस मेडिकल स्ट्रोर से ये दवा ख़रीदने का बिल वन विभाग को जमा कराया था। उसकी बिलिंग उस मेडिकल स्टोर से हुई ही नहीं,यानि जो बिल शफ़ात ने जमा कराया था वो जाली था। इस मामले की जाँच अब भी जारी है साथ ही शफ़ात पर वनविभाग की मेहरबानी भी। इतने राज्यों में बैन के बावजूद शफ़ात को राज्य में विभिन्न ऑपरेशन के लिए बुलाये जाने पर तरह तरह की बातें हो रही है।

नक्सलियों को हथियार सप्लाई के मामले में जा चुका है जेल
शफ़ात और विवाद का पुराना नाता है। एक ओर सरकार देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा नक्सलवाद से लड़ाई लड़ रही है दूसरी तरफ महाराष्ट्र में ऐसे आदमी की ख़ुद सरकार के विभाग द्वारा मदत ली जा रही है जिसके नक्सलियों से लिंक उजागर हो चुके है। वर्ष 1991 और मावोवादियों को हथियार सप्लाई के मामले में कर्नाटक पुलिस शफ़ात को गिरफ़्तार कर चुकी है। इतना ही नहीं माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के मेंबर पटेल सुधाकर रेड्डी के साथ भी वो गिरफ़्तार हो चुका है। वर्ष 2005 में कर्नाटक की ही सीआईडी ने अवैध शिकार के मामले में उसे गिरफ़्तार किया था।

वन विभाग को अपने शार्प शूटरों पर भरोषा नहीं
जंगल में खूंखार जानवरों पर किये जाने वाले ऐसे ऑपरेशन के लिए वन विभाग खुद अपनी एक टीम तैयार रखतीं है। वन विभाग के पास आर्मी बैग्राउंड से आने वाले शार्प शूटर बतौर गार्ड्स और फारेस्ट मैन अपनी सेवाएँ दे रहे है। जंगलों में जंगली जानवरों के लिए काम करने वाले एनजीओ और सामाजिक संगठन शफ़ात पर की जा रही इस मेहरबानी से हैरान है। कुंदन हाथे लंबे समय से बाघों के संरक्षण का काम कर रहे है उनके मुताबिक एक ऐसा आदमी जिसे कई राज्यों ने बैन लगा रखा हो,जिसकी भूमिका संदेहास्पद हो ऐसे ऑपरेशन में उसकी मदत लेना समझ से परे है। ऐसे कई लोग है जिनकी मदत ली जा सकती लेकिन उनकी क्षमताओं को दरकिनार कर शफ़ात को हिओ बुलाया जाता है।

ऑपरेशन के दौरान शफ़ात का हर दिन खर्च हजारों में
जानकर आश्चर्य होगा की शफ़ात जंगलों के बीच भी किसी नवाब की तरह रहता है। हर ऑपरेशन में उसके साथ कई सहयोगी भी रहते है। उसका एक दिन का खर्च हजारों में होता है जिसका भुगतान वन विभाग करता है। और काम होने के बाद उसे पेमेंट भी की जाती है।

Advertisement