नागपुर: महाराष्ट्र राज्य के अन्न सुरक्षा प्रशासन की ओर से अब खाने के लिए उपयोग में लाए जानेवाले बर्फ और अन्य उपयोगी बर्फ बेचने पर कुछ नियम लगाए गए हैं. जिसमें राज्य की अन्न सुरक्षा आयुक्त डॉ. पल्लवी दराडे ने आदेश दिया है कि खाने के इस्तेमाल में लाए जानेवाले बर्फ को पीने के पानी से ही बनाया जाए साथ ही इसके वह पूरी तरह से सफ़ेद होना चाहिए और जो बर्फ खाने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाता उस बर्फ पर उत्पादनकर्ताओं की ओर से थोड़े प्रमाण में नीला रंग डालना (इंडिगो कारमाईन या ब्रिलियंट ब्लू एफसीएफ ) अनिवार्य किया गया है. इस आदेश में बर्फ उत्पादकों को यह भी निर्देश दिया गया है कि अगर खाने के उपयोग में न आनेवाला बर्फ भी अगर सफ़ेद है और उस पर कोई नीला रंग न लगा हुआ होगा तो नियम के तहत उसे खाद्य बर्फ समझा जाएगा और उत्पादनकर्ता पर कार्रवाई की जाएगी.
देखने में आया है कि आम तौर पर कई जगहों पर बर्फ में कोई भी फर्क नहीं दिखाई देता है. दोनों ही तरह के बर्फ को खाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है. हॉस्पिटल के मरच्युरी में भी सफ़ेद बर्फ होता है और शहर की सड़कों पर जूस बेचनेवाले दुकानदारों के पास भी सफ़ेद बर्फ ही होता है. शहर में और शहर के बाहर गंदे पानी से बर्फ को बनाया जाता है. जिसके कारण लोगों के स्वास्थ पर भी इसका दुष्परिणाम दिखाई दे रहा है. गर्मी होने की वजह से बर्फ से बने पदार्थ लोग काफी मात्रा में खाते हैं और जिसमें बड़ी तादाद में बच्चे शामिल होते हैं. इस नियम के तहत अब बर्फ में पहचान जरूरी हो गई है. नागरिकों को भी ध्यान में रखना होगा कि खाने योग्य बर्फ और अयाद्य बर्फ में क्या अंतर है.
इस बारे में नागपुर अन्न विभाग के जॉइंट कमिशनर शशिकांत केकरे ने बताया कि इस नियम को लेकर बड़े बर्फ उत्पादनकर्ताओं की बैठक ली गई है. जिसमें शहर के 13 बड़े बर्फ उत्पादक शामिल हुए थे. उन्हें रंग से सम्बंधित जानकारी दी गई है. उत्पादनकर्ताओं को बर्फ बनाने के उपयोग में लाए जानेवाले पानी की रिपोर्ट भी अपने पास रखनी होगी. जिससे की अन्न विभाग कभी जांच करने जाए तो वे उसको दिखा सके. 6 महीने में एक बार उनकी रिपोर्ट जांचना जरूरी है. अगर सैंपल में मिलावट पायी गई तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी .