Published On : Tue, Feb 12th, 2019

नए स्थाई समिति सभापति चुनाव को लेकर सत्तापक्ष के नगरसेवकों में घुड़दौड़ शुरू

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अधिवक्ता मेश्राम और बंगाले रेस में अागे, आगामी चुनावों के मद्देनज़र जातिगत समीकरण को दी जाएगी प्राथमिकता

नागपुर महानगरपालिका के अगले स्थाई समिति सभापति के लिए इच्छुक सत्ताधारी नगरसेवकों के बीच स्पर्धा शुरू होने की खबर है. इस पद के लिए आधा दर्जन से अधिक सत्तापक्ष के नगरसेवक इच्छुक बताए जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर सत्तापक्ष के निर्णय लेने वाले नेतृत्वकर्ता आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सफलता मिले, ऐसी सूरत में जातिगत समीकरण को प्राथमिकता देने पर मंथन कर रहे हैं.

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याद रहे कि मार्च के पहले सप्ताह लोकसभा चुनाव हेतु आचार संहिता लगने वाली है. इसके पूर्व ही नए स्थाई समिति सभापति के चयन की प्रक्रिया पूरी करने की संभावना है.

वर्तमान स्थाई समिति सभापति विक्की कुकरेजा का यादगार कार्यकाल इसी माह समाप्त होने वाला है. इस कार्यकाल में कुकरेजा की गंभीर पहल पर रिकॉर्ड तोड़ सरकारी अनुदान मिला साथ में जीएसटी के विशेष अनुदान में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई. कुकरेजा के कार्यकाल समाप्ति की भनक लगते ही शहर के कोने कोने से सत्तापक्ष के नगरसेवक अपनी महत्ता को सामने रख स्थाई समिति सभापति बनने को ललायित हैं.

यह भी कड़वा सच है कि शहर का निर्णय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी संयुक्त रूप से लेते हैं. इस बार भी दोनों की सहमति से अगले सभापति का चयन किया जाना तय है. शहर भाजपा भी देवेंद्र और नितिन खेमा में विभक्त है. दोनों खेमों के दूसरे क्रम के नेताओं के पास सभापति बनने के इच्छुक नगरसेवक वर्ग खुद के लिए ‘लॉबिंग’ कर रहे हैं ताकि उनकी सिफारिश तरीके से उक्त दोनों नेताओं के सामने हो और उस पर सकारात्मक निर्णय हो सके.

मनपा में उक्त दोनों नेताओं की सिफारिश पर कुनबी महापौर ,ब्राम्हण सत्तापक्ष नेता ,हलबा उपमहापौर और सिंधी स्थाई समिति सभापति वर्तमान में कार्यरत हैं. इसके अलावा अन्य समिति सभापति अन्य समाज के नगरसेवकों को दी गई.

महापौर के बाद स्थाई समिति सभापति पद का अपना अलग महत्व है. इन दोनों पदों पर तैनात पदाधिकारी का समाज और पक्ष का सकारात्मक परिणाम पड़ता है. वर्ष २०१९ के मध्य में महापौर पद के लिए लॉटरी निकाली जाएगी. फ़िलहाल स्थाई समिति पद के लिए और आगामी चुनाव के मद्देनज़र दलित या फिर मुस्लिम समाज में से किसी एक समाज को प्राथमिकता देने पर सत्तापक्ष को आगामी चुनावों में सकारात्मक लाभ हो सकता है. क्योंकि सत्तापक्ष के पास एकमात्र मुस्लिम नगरसेविका है. उसकी गुणवत्ता के अनुसार वह सिर्फ और सिर्फ उपमहापौर पद के लायक है. इसलिए दलित समाज के नगरसेवकों पर भाजपा शीर्षस्थ नेता विचार कर सकते हैं. चुनावी वर्ष में उच्च शिक्षित दलित नगरसेवक भी एकमात्र अधिवक्ता धर्मपाल मेश्राम हैं, जो आमसभा आदि में काफी सक्रिय देखे जाते हैं.

उल्लेखनीय यह है कि अगर शीर्षस्थ नेताओं में से देवेंद्र फडणवीस को सभापति चयन का मौका मिला तो उनकी पहली पसंद उनके मित्र संजय बंगाले बताए जा रहे हैं, जिन्हें पूर्व में ही आश्वस्त कर दिया गया था कि उन्हें इस कार्यकाल में स्थाई समिति का सभापति नियुक्त किया जाएगा. वे फडणवीस खेमे में सबसे कट्टर माने जाते हैं. उक्त दोनों का नाम वर्तमान परिस्थितियों के कारण सामने आया है लेकिन इसके अलावा अन्य नगरसेवक भी इस पद की दौड़ में जुटे हुए हैं.

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