– सत्तापक्ष और पशुपालन विभाग की मिलीभगत से एक विशेष ठेकेदार के मार्फ़त सम्पूर्ण प्रक्रिया पूर्ण करने की कवायद
नागपुर : नागपुर जिला परिषद में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष इस बात को लेकर आमने-सामने हैं कि लाभार्थियों को पशुधन कैसे वितरित किया जाए। सत्तापक्ष टेंडर के लिए दबाव बना रहा है तो विपक्ष लाभार्थी के खाते में सीधे अनुदान जमा करने के लिए निरंतर मांग कर रहा,इस चक्कर में पक्ष-विपक्ष में तनातनी इनदिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं.
याद रहे कि मामला 30 करोड़ रुपए का होने के कारण इस समय पशुधन वितरण का मामला थोड़ा गर्मा गया है। किसी को परवाह नहीं है कि पशुधन वितरित किया गया था या नहीं। पशुपालन विभाग पशुधन की आपूर्ति के लिए एक ठेकेदार को नियुक्त करना चाहता है। उक्त प्रस्ताव जिलापरिषद कीआम सभा में भी पारित कर शासन को भेजा जाएगा।
इससे लाभार्थियों को पशुओं के लिए दो माह का इंतजार करना पड़ रहा है। कहा जा रहा है कि सत्तारूढ़ दल और पशुपालन विभाग के कुछ अधिकारियों की वजह से लाभार्थियों का भारी नुकसान होगा.
जिला परिषद के पशुपालन विभाग के माध्यम से किसानों और खेतिहर मजदूरों को बकरी, भेड़ और गाय का वितरण किया जाएगा। जिला परिषद को समाज कल्याण विभाग, माइनिंग फंड से 30 करोड़ रुपये से अधिक अनुदान प्राप्त हुए हैं। सरकार की नीति के मुताबिक किसानों को खुले बाजार से पशुधन लेना हैं लेकिन जिला परिषद की सत्ताधारी एक विशेष आपूर्तिकर्ता से इसके वितरण पर जोर देती है।
उल्लेखनीय यह है कि पशुपालन विभाग के कुछ अधिकारी इसे लेकर खासे उत्साहित हैं। उन्हें सत्ता पक्ष में कुछ लोगों का समर्थन प्राप्त है। स्थायी समिति में यह मुद्दा उठाया गया था। शिवसेना सदस्य संजय झाड़े और विपक्ष के नेता आतिश उमरे ने इसका विरोध किया था। उस समय उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ था। अब इस मामले को फिर से आमसभा में उठाया गया। जिसे मंजूरी देने के बाद अब प्रस्ताव को मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा।
…. तो लाभार्थियों का नुकसान
अकारण ठेकेदार की नियुक्ति सरकार की नीति के खिलाफ है। इसलिए उसके लिए राज्य सरकार की सम्बंधित विभाग से अनुमति लेना मुश्किल है। स्थानीय स्वराज संस्था के प्रस्तावों का जवाब सरकार द्वारा हर एक या दो साल में दिया जाता है। ऐसे में उपलब्ध राशि की बर्बादी या अनुदान वापिस जाने की संभावना है। ऐसे में लाभार्थियों को कसान हो सकता हैं.
मार्च में आया अनुदान
पशुधन के लिए अनुदान वर्ष 2021-22 के लिए योजना में है और मार्च माह में पूरा निधि/अनुदान जिला परिषद में आया। लेकिन पशुपालन विभाग में पूर्णकालिक अधिकारी नहीं होने के कारण खर्च नहीं किया गया. चूंकि निधि 30 करोड़ रुपये से अधिक था, इसलिए एक आपूर्तिकर्ता को काम पर रखने के लिए एक अनुबंध तैयार किया गया था,ताकि सम्बंधित सत्ताधारी नेताओं को व्यक्तिगत लाभ हो सके। जिलापरिषद में बहुत चर्चा है कि इससे लाभार्थियों से ज्यादा दूसरों को फायदा होता है। अगर यह निधि साल 2022-23 में खर्च नहीं किया गया तो इसे सरकार को वापस कर दिया जाएगा,जो नियम हैं.