नागपुर: नागपुर महानगर पालिका चुनाव में गठबंधन की राजनीति दिखायी देने के आसार कम ही दिखाई दे रहे हैं। राज्य और केंद्र में सहयोगी बीजेपी – शिवसेना और काँग्रेस – राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी एक दूसरे पर जिस तरह निशाना साध रहे हैं, उस सूरत में इन दलों के मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना लगातार कमतर होती जा रही है। बीते चुनावों का अनुभव देखें तो अपने सहयोगी दल को आँखें दिखाने वाले दल गठबंधन के फाँस में फँस ही जाते हैं। इस बार का महानगर पालिका चुनाव कई मायने में खास माना जा रहा है। इसलिए चुनाव के दौरान काफी चीजें नई देखने को मिलेंगी, इसमें गठबंधन भी शामिल है। राजनितिक दलों के अंदरखाने में गठबंधन को लेकर क्या चल रहा है इसका विश्लेषण खुद मनपा की राजनीति पर बारीकी से निगाह रखने वाले पत्रकार कर रहे हैं।
कार्यकर्ता के साथ अन्याय न हो इसलिए नहीं होगा गठबंधन – राकेश भीलकर
पुण्य नगरी के पत्रकार और महानगर पालिका की बीट देखने वाले राकेश भीलकर के मुताबिक गठबंधन की संभावना न के बराबर की है। इसकी प्रमुख वजह उन्हें लगती है कि चुनाव में उम्मीदवारी माँगने वाले कार्यकर्ताओं की भीड़ है। अगर गठबंधन होता है तो छोटे बड़े दोनों दलो के कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय होगा। पार्टीयो के अंदर खाने की गठबंधन को लेकर विरोध है।
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बीजेपी को गठबंधन से विज़न के नुकसान का डर – महेन्द्र आकांत
तरुण भारत के पत्रकार महेन्द्र आकांत के मुताबिक बीजेपी ने महानगर पालिका चुनाव में 100 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है अगर गठबंधन होता है तो सीटों के आवंटन से पार्टी का विज़न गड़बड़ा सकता है इसलिए वो खुद गठबंधन नहीं चाहती। बीजेपी को भरोसा है कि उसके एक दशक की मेहनत का नतीजा जनता जरुर देगी। वैसे भी इस चुनाव में किसी उम्मीदवार की छवि से ज्यादा पार्टी की ताकत की अहमियत होगी।