आज़ाद भारत के इतिहास का एकअत्यंत ही दुःखद घटनाविकास क्रम। इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। आरोप-प्रत्यारोप से इतर ऐसा पहली बार हुआ जब देश के प्रधानमंत्री द्वारा प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को धमकाने की घटना का उल्लेख करते हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपें! हाँ, ऐसा ही हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों, 6 मई को हुबली की एक सार्वजनिक जनसभा में कांग्रेस का नाम लेते हुए धमकी दे डाली कि,”..कांग्रेसियों कान खोलकर सुन लो, सीमा पार करोगे तो, ये मोदी है मोदी.. लेने के देने पड़ जाएंगे !”इसके पूर्व भाषण में सोनिया और राहुल पर निहायत निजी हमला भी प्रधानमंत्री कर गए।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने अन्य नेताओं के साथ राष्ट्रपति को पत्र लिखकर टिप्पणी की कि एक प्रधानमंत्री की भाषा ऐसी नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री खुलेआम विपक्ष को धमकी दे रहे हैं। पत्र में मांग की गई है कि राष्ट्रपति हस्तक्षेप कर प्रधानमंत्री को रोकें।
सचमुच, हाल के दिनों में दलीय राजनीति के स्तर में चिंताजनक पतन देखा गया।तथ्यों के आधार पर आरोप-प्रत्यारोप का स्वागत है, लेकिन भद्दे रूप में व्यक्तिगत आक्षेप लोकतंत्र को असहनीय है। विशेषकर प्रधानमंत्री के मुख से। कोई आश्चर्य नहीं कि देश आज प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों से हतप्रभ है।भला एक प्रधानमंत्री, मामूली सड़कछाप टुटपुंजिये नेता की तरह कैसे बोल सकते हैं?प्रधनमंत्री के प्रति पूरे सम्मान के साथ इस टिप्पणी के लिए सभी लोकतंत्र प्रेमी विवश हैं कि यहां प्रधानमंत्री चूक गए। प्रधानमंत्री पद की गरिमा के बिल्कुल विपरीत आचरण के दोषी बन गए हैं मोदी जी।
बचाव में सत्ता पक्ष 2007 के गुजरात चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के ‘मौत के सौदागर’ वाला वक्तव्य सामने ला रहा है।ये कुतर्क है। निःसंदेह सोनिया गांधी ने तब गलत किया था। लेकिन, ध्यान रहे, सोनिया प्रधानमंत्री नहीं थी।
प्रधनमंत्री देश का आदर्श होते हैं। उनका आचरण अनुकरणीय होना चाहिए न कि गटर में फेंकने लायक अपशब्द-धमकी?उन्हें संयम बरतना चाहिए न तो प्रधानमंत्री को ऐसे किसी शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए और न ही प्रधानमंत्री के लिए किसी अपशब्द का इस्तेमाल! जनता इसे बर्दाश्त नहीं करती। ध्यान रहे, सत्तर के दशक के अंतिम दिनों में इंदिरा गांधी को दक्षिण के एक नेता ने ” अंतरराष्ट्रीय वेश्या, international prostitute” बता कर तूफान खड़ा कर दिया था। तब सभी राजदलों के नेताओं ने उस वक्तव्य की आलोचना की थी। और अगले चुनाव में कांग्रेस का साथ दे देश की जनता ने भी अपना विरोध जता दिया था।
ताज़ा घटनाविकास क्रम भी एक गंभीर मामला है। राष्ट्रपति को पत्र लिखकर पूर्व प्रधानमंत्री एवं अन्य ने वस्तुतः एक औपचारिकता पूरी की है। उनका असली उद्देश्य देशवासियों का ध्यान आकृष्ट करना था। इसमें वे सफल रहे पूरे देश में प्रधानमंत्री के शब्दों की भर्त्सना हो रही है। मोदी को चाहने वाले अनेक निजी बातचीत में स्वीकार कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री को ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था।
खैर, अब जो हुआ सो हुआ। बेहतर हो प्रधानमंत्री अपने शब्दों के लिए खेद प्रकट करें और सुनिश्चित करें कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो। और विपक्ष भी प्रधानमंत्री पर प्रहार में मर्यादा/शालीनता का ध्यान रखें।