Nagpur : कोल् इंडिया के वर्त्तमान आर्थिक वर्ष के अंकेक्षण में सबसे अंतिम पायदान पर नागपुर की वेस्टर्न कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड खड़ी हैं.बावजूद इसके उल्लेखनीय सुधार के बजाय आम नागरिकों को न समझने वाली आंकड़ों की गुमराहपूर्ण तस्तरी सजा कर खुद की पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही.वेकोलि प्रबंधन ने एक कदम आगे आकर यह भी दावा किया कि घाटा कम करने के लिए खदान से निकलने वाली रेती और पानी को बेचने का क्रम शुरू किया,जिससे काफी मुनाफा होंगा।
वेकोलि प्रबंधन के उक्त दावे को मुख्यालय के आला अधिकारी ही खिल्ली उड़ा रहे.अबतक आसपास के नदी किनारे से रेती खरीद भूमिगत खदानों बंद करने के बाद खदान धंसे नहीं इसलिए रेती का भरन का चलन था.इस भरन में खदान तो उचित रूप से भर नहीं पाया लेकिन संबंधितों के जेब ‘ओवरफ्लो’ जरूर हो गए.भूमिगत खदानों का दौर कम होते ही खुली खदानों का दौर शुरू हुआ.इन खदानों का उत्पादन बंद होने के बाद या ज्यादा गहरा खुदाई के बाद ‘लैंड स्लाइडिंग’ की खतरा को भांप कई दफे डीजीएमएस ने खदान बंद करने और बंद किये जाने वाले खदानों को ‘फिलिंग’ कर समतल करने के निर्देश जारी किये लेकिन उक्त निर्देशों का पालन नहीं किया गया.खदान से निकलने वाली रेती के साथ भरपूर मात्रा में मिट्टी से सनी होती हैं,जिसे अलग-अलग कर काम के उपयोगी बनाना ही टेढ़ी खीर हैं.फिर उसके बाद रेती बेच कमाना मुमकिन नहीं।
दूसरी ओर खदानों से निकलने वाला पानी एसिडयुक्त होता हैं,इसमें खदान की धूल (डस्ट ) मिली होती हैं,जब यह पानी बाहर आसपास के खेतों में छोड़ा जाता हैं तो प्रदूषित पानी के साथ पानी में मिला धूल फसल के पत्तों में चिपक जाता हैं और फसल को नुकसान पहुंचता हैं.पीने के लिए इसका शुद्धिकरण कर पिने के उपयोग में लाना और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही साबित हुआ हैं.
उक्त दोनों उदहारण से यह तो साफ़ हैं कि कोयला उत्पादन खर्च से हो रही नुकसान भरपाई असंभव हैं.कोयला उत्पादन से होने वाली आय में वृद्धि के लिए खदान प्रबंधन से सीएमडी और सीएमडी से लेकर कोल इंडिया अध्यक्ष सह कोयला मंत्रालय को कोयला चोरी करवानी बंद करनी ही होंगी। जबतक उक्त चोरी बंद नहीं होती और ऊपर से बढ़ते जा रहे प्रशासकीय खर्च से लाजमी हैं कि वेकोलि हमेशा घाटे का ही अंकेक्षण रिपोर्ट पेश करता रहेंगा।वेकोलि का ‘कॅश फ्लो’ डगमगा गया.आज मासिक वेतन देने की तकलीफ वेकोलि प्रबंधन झेल रहा हैं.
मुख्यालय सूत्रों के अनुसार जब आर. बी. माथुर सीएमडी हुआ करते थे तब वेकोलि के कोयले का जो ग्रेड चलन में था,जिसे ‘कॅश’ करने में वेकोलि प्रबंधन ने महत्ता नहीं समझी।अब जबकि वेकोलि के कोयले का ग्रेड ‘दो लेवल’ कम हो गया तो आ गए आर्थिक अड़चन में.पिछले २ आर्थिक वर्षो में घाटा दोगुणा हो गया हैं.
कोयला चोरी में खदान के आसपास के सफेदपोश और उनको वेकोलि की सुरक्षा एजेंसी शह दे रही.सुरक्षा रक्षकों की मज़बूरी होती हैं चोरी में साथ देना,क्यूंकि मुख्यालय में बैठे सुरक्षा प्रमुख का ‘वन लाइनर आर्डर’ होता हैं,जिसका वे अनुशरण करते है.वेकोलि सुरक्षा विभाग की चोरी में भागीदार जब कैप्टन काले सुरक्षा प्रमुख थे,तब मामला सार्वजानिक हुआ था,वर्धमान नगर निवासी किशोर अग्रवाल से साठगांठ कर कोयला चोरी धरी गई थी.
उल्लेखनीय यह हैं कि वर्त्तमान सीएमडी सरल हैं,कार्यकाल भी मात्र २ वर्ष का शेष हैं,कोल् इंडिया बनने की उम्मीद पर पानी फिर गया.देश में “झा लॉबी’ का अपना एक मजबूत अघोषित संगठन हैं,इसी लॉबी के प्रभाव से ए के झा चेयरमैन बन गए.दरअसल वर्त्तमान सीएमडी के कार्यकाल में परफॉर्मेंस से ज्यादा ‘सेल्स और फाइनेंस’ विभाग में धांधलियां हुई.जिस पर ‘पीएमओ’ ने उंगलियां उठाई थी और चौधरी को ‘सेल्स’ से हटाने का निर्देश दिया था.सीएमडी ने चौधरी को हटा दिया लेकिन वित्त विभाग में धांधलियां थमी नहीं।इसके अलावा सीएमडी ने कई खदान खोले,जिसके तहत सफेदपोशों को खुश भी किये लेकिन उत्पादन अल्प होने से सीएमडी दिक्कत में हैं,जिसे छिपाने के लिए लीपापोती जारी हैं.
– राजीव रंजन कुशवाहा