नई दिल्लीः इंडिया सवांद के खबर के अनुसार स्थान -अहमदाबाद। दिन- सोमवार। समय-रात 11 बजे। अचानक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पहुंचते हैं। उनके साथ होते हैं महाराष्ट्र के ही वरिष्ठ भाजपा नेता चंद्रकांत पाटिल। फिर बंद कमरे में होती है अमित शाह के साथ मीटिंग। रातोंरात हुई इस मुलाकात के अब सियासी गलियारे में मायने तलाशे जा रहे। चूंकि मीटिंग उस वक्त हुई, जब ठीक दो घंटे पहले सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई करने वाले जज बृजगोपाल की संदिग्ध मौत के खुलासे की खबर आग की तरह सोशल मीडिया पर फैल रही थी। विपक्ष भी सोशल मीडिया पर इसे टॉप ट्रेंड कराकर भाजपा के चाणक्य की घेराबंदी में जुटा था। लाजिमी है ऐसे नाजुक वक्त में जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के साथ मीटिंग होगी तो अटकलें भी तमाम लगेंगी। अटकलें लगें भी क्यों न, जब केस में चाहे जज का मूल निवास स्थान लातूर हो या फिर संदिग्ध मौत की मुखर होकर न्यायिक जांच की मांग उठा रही पुणे निवासी बहन। या फिर मौत स्थल यानी नागपुर का सरकारी गेस्ट हाउस। सबका महाराष्ट्र से संबंध है।
हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता इसे महज एक सामान्य मुलाकात बताते हैं। मसला गुजरात चुनाव से जुड़ा बताते हैं। खुद देवेंद्र फडणवीस भी मीटिंग से निकलकर पत्रकारों से इस मुलाकात के पीछे दो वजहें बताते हैंः एक वजह महाराष्ट्र में संभावित कैबिनेट विस्तार की तो दूसरी वजह गुजरात चुनाव में महाराष्ट्र इकाई की ओर से सहयोग की।
भाजपा नेता या फिर फडणवीस जो कह रहे, उसे सियासी जानकार अर्धसत्य मानते हैं। मुलाकात की जो टाइमिंग चुनी गई, मतलब उसी के निकाले जा रहे। कहा जा रहा कि एनडीए में शामिल हुए नारायण राणे को कैबिनेट में लेना है या नहीं और महाराष्ट्र कैबिनेट के विस्तार का फैसला जब गुजरात चुनाव के बाद होना है। चुनाव भी मध्य दिसंबर तक चलेगा। ऐसे में इतनी आपातकालीन मीटिंग की जरूरत क्यों पड़ी।
इंडिया संवाद ने भी कुछ भरोसेमंद सूत्रों के जरिए इस मीटिंग के अंदरखाने की बात समझने की कोशिश की। लब्बोलुआब निकला कि मेनस्ट्रीम मीडिया की रिपोर्ट में जो बातें आ रहीं, मामला दरअसल उतना नहीं बल्कि और गहरा है। मेनस्ट्रीम मीडिया ने बगैर गहराई में उतरे ही सरपट खबर दौड़ा दी कि कैबिनेट विस्तार और गुजरात चुनाव के सिलसिले में शाह से फडणवीस की मुलाकात हुई है। मगर माजरा कुछ और है।
सूत्र बताते हैं कि सोहराबुद्दीन केस से जुड़े सीबीआई के जज बृजगोपाल की संदिग्ध मौत के मामले से जुड़ी खबर जिस तरह से तीन साल बाद सोमवार को वायरल हुई, उससे अमित शाह परेशान हैं। इलेक्शन के टाइम पर यह खबर कैसे प्लांट हुई, जो परिवार पहले चुप्पी साधे था, वह अचानक कैसे मुखर हो गया। क्या परिवार के पीछे कोई उनका राजनीतिक विरोधी खड़ा है, जो उन्हें घेराबंदी के लिए उकसा रहे। ऐसे कई सवाल अमित शाह के जेहन में उमड़-घुमड़ रहे हैं। इन्हीं सवालो की तलाश में अमित शाह को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की जरूरत महसूस हुई है। क्योंकि जज का परिवार महाराष्ट्र का है और जो रिपोर्टर निरंजन टकले धड़ाधड़ खुलासे कर रहे, वह भी मुंबई के ही हैं। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार ही मामले को हैंडल कर सकती है।
क्या परिवार को मैनेज करने की तैयारी है
शाह और देवेंद्र फडणवीस की मुलाकात इस मायने में भी खास है। क्योंकि जिस जज की संदिग्ध मौत का मामला उछल रहा, उसके परिवार से जुड़े लोग पुणे और लातूर में रहते हैं। जब एक दिसंबर 2014 को जज की मौत की खबर परिवार को मिली थी तब किसी सदस्य ने कोई बयानबाजी नहीं की थी। मगर तीन साल बाद अब परिवार मुखर है। जज के पिता हरकिशन, बहन अनुराधा और भांजी नुपूर ने जज बृजगोपाल की मौत को संदिग्ध बताते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग शुरू कर दी है। चूंकि सोहराबुद्दीन केस के मुख्य आरोपी अमित शाह रहे। ऐसे में लाजिमी है कि जज की संदिग्ध मौत का मामला जितना उछलेगा, वह उनके लिए ही मुसीबत बनेगा। क्योंकि विपक्ष घेराबंदी अमित शाह की ही करेगा।
भाजपा के ही एक नेता का कहना है कि- ‘चुनावी मौसम में उछली इस खबर ने पार्टी को जरूर चिंता में डाल दिया है। भले ही जज की मौत से शाह का कोई लेना-देना न हो, मगर सोशल मीडिया और आम जन में जज की संदिग्ध मौत और केस से अमित शाह के जुड़ने पर जो कहानियां गढ़कर विपक्ष घेराबंदी करने में जुटा है, उससे पार पाना मुश्किल है।’ सूत्र बता रहे हैं कि कि शाह और फडणवीस की मुलाकात में इस मामले की भी चर्चा हुई। शाह को लगता है कि जज के परिवार को कोई भड़का रहा। लिहाजा पता लगाया जाए कि परिवार के पीछे कौन शख्स खड़ा है। जो कि गेस्ट हाउ में मौत के इस मामले में उनकी घेराबंदी में जुटा है।
क्या कहता है परिवार
30 नवंबर 2014 को नागपुर के गेस्ट हाउस में जज बृजगोपाल लोया की मौत हो गई थी। जस्टिस लोया साथी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में शरीक होने नागपुर आए थे। उनके रहने का इंतजाम वीआइपी गेस्ट हाउस में हुआ था। अगले दिन एक दिसंबर को परिवार को बताया गया कि मौत हार्टफेलियर से हुई। जज का परिवार लातूर जिले के गेटगांव का निवासी है। उनके पिता आज भी पैतृक गांव में रहते हैं। मेडिकल पेशे से जुड़ीं बहन अनुराधा पुणे में रहतीं हैं। खैर, उस वक्त परिवार ने कुछ नहीं बोला। मगर खोजी पत्रकार निरंजन टकले को जज की मौत का मामला सामान्य नहीं बल्कि संदिग्ध लगा। इस पर उन्होंने जज की भांजी नुपूर से संपर्क किया। फिर उन्होंने जज की बहन और पेश से चिकित्सक अनुराधा बियानी से बातचीत की।
हालांकि जान का खतरा बताकर जज की पत्नी और उनके बेटे ने रिपोर्टर निरंजन से बातचीत से इन्कार कर दिया था। जज की बहन और भांजी ने मौत को पूरी तरह से संदिग्ध बताते हुए चौंकाने वाले दावे किए। उन्होंने बताया कि- मुंबई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने मौत से पहले बृजगोपाल को सौ करोड़ घूस ऑफर की थी। वे चाहते थे कि बृजगोपाल सोहराबुद्दीन केस में आरोपियों को लाभ पहुंचाने के लिए मनचाहा फैसला दें। मगर उन्होंने इन्कार कर दिया था। इस बीच संदिग्ध मौत होती है। फिर नए जज कुर्सी संभालते हैं तो शाह सहित 11 आरोपियों को एक महीने के भीतर फर्जी एनकाउंटर के मामले में क्लीन चिट मिल जाती है।
परिवार का कहना है-संदेहास्पद परिस्थितियों में जस्टिस लोया का शव नागपुर के सरकारी गेस्टहाउस में मिला था। इस मामले को तत्कालीन भाजपा सरकार ने हार्टफेलियर का रूप दिया। लेकिन कई अनसुलझे सवाल इस मौत पर आज भी जवाब मांग रहे हैं। जस्टिस लोया सुनवाई के जिस निर्णायक मोड़ पर थे, निर्णय देने वाले थे, उसकी हम हकीकत में बाद में बताएंगे। पहले जानते हैं कि उनके परिवार ने इस संदिग्ध मौत पर कौन-कौन से सवाल उठाए हैं।
परिवार के सात सवाल
1-जस्टिस लोया की मौत कब हुई, इस पर अफसर से लेकर डॉक्टर अब तक खामोश क्यों हैं। तमाम छानबीन के बाद भी अब तक मौत की टाइमिंग का खुलासा क्यों नहीं हुआ
2-48 वर्षीय जस्टिस लोया को न तो दिल की बीमारी थी, न ही इससे जुड़ी कोई मेडिकल हिस्ट्री थी, फिर मौत का हार्टअटैक से कनेक्शन कैसे
3- उन्हें वीआइपी गेस्ट हाउस से सुबह के वक्त आटोरिक्शा से अस्पताल क्यों ले जाया गया , वो भी एक निजी संदिग्ध हास्पिटल में क्यों भर्ती कराया गया
4-हार्टअटैक होने पर परिवार को तत्काल क्यों नहीं सूचना दी गई। जब मौत हार्टअटैक से बताई गई तो फिर नेचुरल डेथ के इस मामले में पोस्टमार्टम क्यों हुआ। अगर पोस्टमार्टम इतना जरूरी था तो फिर परिवार से क्यों नहीं पूछा गया
5-पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के हर पेज पर एक रहस्मय दस्तख्वत हैं, ये दस्तख्वत जस्टिस लोया के कथित ममेरे भाई का बताया गया है। परिवार का कहना है-संबंधित हस्ताक्षर वाला जस्टिस का कोई ममेरा भाई नहीं है
6-अगर इस रहस्यमय मौत के पीछे कोई साजिश नहीं थी तो फिर मोबाइल के सारे डेटा मिटाकर उनके परिवार को ‘डिलीटेड डेटा’ वाला फोन क्यों दिया गया
7-अगर मौत हार्टअटैक से हुई फिर जज के कपड़ों पर खून के छींटे कैसे लगे।