क्या सचमुच हमारे देश भारत में लोकतंत्र की हत्या हो रही है? क्या हम अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहे हैं? क्या पूरे देश की सोच को ‘नपुंसक’ बनाने की साजिश रची जा रही है? क्या हर सम्प्रदाय, हर जाति की युवा पीढ़ी को एक ‘विशिष्ट सोच’ की दिशा में अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है? क्या पूरी की पूरी युवा पीढ़ी को बौना बना कुंठित मानसिकता के दलदल में फेंक देने की कोशिश की जा रही है? यही नहीं, ऐसे ही अनेक सवाल आज भारत पूछ रहा है. कोई किन्तु-परन्तु नहीं. सच यही है कि ऐसे अनेक सवाल पूछे जा रहे हैं. आश्चर्य नहीं, बल्कि पीड़ादायक कि सभी सवाल अनुत्तरित हैं. समाज के एक सामान्य युवा की जिज्ञासा कि आखिर क्यों का जवाब देने की हिम्मत किसी कोने से अपवाद के रूप में ही दिख रही है.
क्या आजाद लोकतांत्रिक भारत के ऐसे ही स्वरूप-चरित्र की कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी? सवाल यह भी उठता है कि क्या उनकी कल्पना एक पूर्णतया आजाद, निष्पक्ष, निडर लोकतांत्रिक भारत की थी? ऐसे भारत की, जिसमें सर्वधर्म समभाव की छत के नीचे अभिव्यक्ति की आजादी होगी…किसी भी प्रकार के दबाव से कोसों दूर, लेकिन खेद कि आज के हमारे लोकतंत्र शब्द के पूर्व ‘कथित’ शब्द जोड़ा जाने लगा है. अर्थात कथित लोकतंत्र! निश्चय ही हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आत्माएं आज बिलख रही होंगी. आजाद भारत के ऐसे स्वरूप की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.
क्या हो गया है हमारे पक्ष-विपक्ष के नायकों को? सामान्य भारतीय स्तब्ध है यह देखकर कि विपक्ष के प्रमुख नेताओं की सदस्यता एक के बाद एक निलंबित की जा रही है. यही नहीं, सत्ता के विरुद्ध विपक्षी सदस्यों के शब्दों को कार्यवाही से निकाल दिया जा रहा है. मुखर विपक्षी सांसद निलंबित किए जा रहे हैं. और तो और, संसद में विपक्ष के नेता तक को निलंबित कर दिया जाता है. ऐसे कृत्य से स्वयं लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी भी कठघरे में खड़े हो जाते हैं. क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि वे सत्ता पक्ष के खिलाफ कुछ न बोलें? सरकार के खिलाफ सत्तारूढ़ दल के नेता अर्थात प्रधानमंत्री के खिलाफ सभी मौन रहें? सरकार की कानून अथवा नियम विरुद्ध कार्यों तक का उल्लेख कोई न करे? प्रधानमंत्री या अन्य किसी मंत्री द्वारा संसद में बताए गए गलत तथ्यों का उल्लेख कोई न करे? अगर ये सच हैं, तो निश्चय ही लोकतंत्र की हत्या की जा रही है. इसे ही तो अधिनायकवादी प्रवृत्ति कहते हैं. तत्संबंधी अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं.
तीन माह से अधिक समय से हत्या, बलात्कार, आगजनी व पलायन के दंश को झेल रहे मणिपुर राज्य के मुद्दे पर केंद्रित लोकसभा में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अविश्वास प्रस्ताव पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषण की बात को ही ले लें. गृह मंत्री यवतमाल (महाराष्ट्र) की एक गरीब महिला कलावती का नाम लेकर राहुल गांधी को घेरते हुए बोले, ‘बड़ा अच्छा है कि आप इतने बड़े आदमी होकर गरीब कलावती के घर गए, भोजन किया.
बाद में इनकी सरकार 6 साल चली. मैं पूछना चाहता हूं कि उस गरीब कलावती का क्या किया? कलावती को बिजली, घर, शौचालय, अनाज, स्वास्थ्य…ये सब देने का काम नरेंद्र मोदी ने किया. इसलिए जिस कलावती के घर पर आप भोजन के लिए गए हो, किसी को भी मोदी जी पर अविश्वास नहीं है. वो भी आज मोदी जी के साथ खड़ी है.’ और जब कलावती ने कहा, ‘वो (शाह) जो कुछ कह रहे हैं, झूठ है. राहुल गांधी (2008 में) मुझसे मिलने आए थे, तो उन्होंने ही मेरी वित्तीय मदद की थी. बिजली कनेक्शन, घर भी राहुल की ही देन है. 2013-14 में ये सब हुआ. मोदी सरकार ने मुझे कोई वित्तीय मदद नहीं दी. जैसे सभी को दो हजार रुपये मिलते हैं, मुझे भी दो-तीन बार मिले. मुझे स्कीम के जरिए गैस कनेक्शन भी नहीं मिला. मैंने इसे खरीदा है.’ जरा सोचिए, कितनी विडंबनापूर्ण, पीड़ादायक, हास्यास्पद स्थिति है यह, सर्वोच्च स्तर पर. हद तब हो जाती है जब प्रधानमंत्री 3 माह से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद ‘बाध्य’ होकर संसद में 2 घंटा 13 मिनट के अपने रिकॉर्ड लम्बे भाषण में मणिपुर पर बस 2 मिनट बोले, बाकी समय विपक्ष दलों की खिंचाई करने, अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाने में खर्च कर दिए. अपने भाषण के बीच हंसते-मुस्कराते-कटाक्ष करते प्रधानमंत्री ने तब देशवासियों के कान खड़े कर दिए जब कहा कि 75 साल में पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया. वे यह भूल गए कि इन 75 सालों में उनके भी 9 साल शामिल हैं. यद्यपि प्रधानमंत्री ने कहा कि मणिपुर में महिलाओं के साथ गंभीर अपराध हुआ है, दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भरपूर प्रयास कर रही हैं. निकट भविष्य में शांति का सूरज निकलेगा, लेकिन ‘प्रयास’ पर पड़ा पर्दा नहीं उठाया. कामना है वह दिन जल्द आए. यहां महिला विकास मंत्री स्मृति ईरानी के ‘जोश’ में होश खो देने का उल्लेख करना समीचीन होगा जब उन्होंने संसद में राहुल गांधी पर ‘फ्लाइंग किस’ का आरोप लगा दिया. झूठ झूठ होता है, सच सच होता है. सदन की पड़ताल में आरोप झूठा न पाया गया होता, तो देश की राजनीति की दिशा-दशा क्या होती, कल्पना करने भर से रोएं खड़े हो जाते हैं. फिलहाल इस परिदृश्य से तो यही प्रतीत होता है कि हमारा देश नेतृत्व की ऊंचाई चढ़ने की बजाय उसके उलट जा रहा है.
सत्ता पक्ष यह न भूले कि इनसे स्वयं उनका नुकसान हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान मोदी नेतृत्व की सरकार की उपलब्धियों पर अंधकार का साया पड़ जाता है, जबकि इन उपलब्धियों के कारण आज भारत की एक विशिष्ट पहचान बनी है. भारत विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान पाने हेतु तेजी से कदम ताल कर रहा है. विश्व गुरु का आसन भारत की प्रतीक्षा कर रहा है. फिर इन पर अंधकार का साया क्यों? वह भी सत्ता पक्ष की कारगुजारियों के कारण. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का चिंतक मंडल इन पर विचार करे. आत्मावलोकन करे.